राजन मिश्रा/ मंटू पाठक
27 जून 2020
विशेष रिपोर्ट
जलवायु परिवर्तन के जोखिम के कारण भारत में दूसरी सर्वाधिक मृत्यु दर है। भविष्य में भी इस स्थिति के, खासकर जो चेन्नई सहित तटीय क्षेत्रों में रहते हैं, बेहतर होने की अधिक संभावना नहीं है। चेन्नई के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया एक मौडेलिंग अध्ययन भविष्य में असहज कर देने वाले जलवायु परिवर्तन संबंधित परिदृश्यों की ओर इंगित करता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि कार्बन उत्सर्जन में यह वृद्धि चेन्नई क्षेत्र के लिए बहुत अधिक बारिश के लिए अनुकूल संभावना को जन्म दे रहे हैं। मौडेलिंग अध्ययन के परिणामों में बताया गया है कि वर्तमान स्तरों की तुलना में भविष्य में किसी शीर्ष वर्षा वाले दिन में चेन्नई के लिए अनुमानित वर्षा में 17.37 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। ये अनुमान वर्ष 2075 के लिए व्यक्त किए गए हैं। चेन्नई भारत के उन नगरों में से एक है, जहां प्रति व्यक्ति ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन उच्चतर श्रेणी में आते हैं।
आईआईटी, मद्रास के लीड रिसर्चर प्रो. सी बालाजी ने कहा, ‘ बढ़ी हुई तीव्रता और बारिश की ऐसी घटनाओं के भौगोलिक विस्तार से भारी बाढ़ आ सकती है, जिसके भविष्य में अधिक दिनों तक जारी रहने का अनुमान है जिससे खतरा पैदा हो सकता है और स्थानीय समुदायों को नुकसान होने की आशंका पैदा हो सकती है। ‘ इस शोध में इस बात पर भी बल दिया गया है कि वर्षा की मात्रा में नाटकीय तरीके से 183.5 प्रतिशत, 233.9 प्रतिशत और 70.8 प्रतिशत की बढोतरी होने की आशंका है। ये प्रतिशतता 2015 चेन्नई वर्षा के लिए क्रमशः 2,3 एवं 4 दिसंबर के लिए वर्तमान की तुलना में भविष्य में वर्षा में दैनिक वृद्धि का प्रतिनिधित्व करती हैं। उपरोक्त के अतिरिक्त, अति वर्षा जल प्राप्त करने वाले क्षेत्र की भौगोलिक सीमा के बदतर हो जाने की आशंका है क्योंकि वर्षा होने की अवधि लंबी हो जाएगी। दक्षिण भारत के राज्यों में भारी वर्षा होने की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिससे वहां भयानक बाढ़ आने लगी हैं।
यह अध्ययन केवल एक घटना पर विचार करता है और इसलिए इसके परिणाम अधिक वर्षा और बाढ़ आने की ओर इंगित करते हैं। डॉ. बालाजी ने कहा, ‘ बेहतर निष्कर्ष पर आने के लिए मानसून-पूर्व एवं मानसून-पश्चात जैसे विभिन्न मौसमों के दौरान कई मामलों का अध्ययन किए जाने की आवश्यकता है, जिससे कि सभी हितधारकों के लिए जलवायु परिवर्तन से बेहद उग्र वर्षा की घटनाओं का वैज्ञानिक रूप से भरोसेमंद मात्रात्मक प्रत्युत्तर उपलब्ध कराया जा सके। मौसमों के अतिरिक्त, महासागर भी इन बेहद उग्र वर्षा की घटनाओं में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं, इन सामूहिक कारकों के अध्ययन से और अधिक सटीक निष्कर्ष निकलेंगे।
यह शोध एसपीएलआईसीई -जलवायु पविर्तन कार्यक्रम के तहत भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्त पोषित ‘जलवायु पविर्तन तटीय अवसंरचना एवं अनुकूलन रणनीतियों को प्रभावित करता है’ परियोजना के एक हिस्से के रूप में किया गया है। अध्ययन में अनुमानों के लिए वेदर रिसर्च एंड फोरकास्टिंग (डब्ल्यूआरएफ) मॉडल का उपयोग किया गया। -ज्योति सिंह द्वारा
डॉ. पी ज्योतिषकुमार एवं डॉ. पी.वी. किरण दो अन्य शोधकर्ता हैं जो इस अध्ययन से जुड़े थे। शोध के निष्कर्ष करेंट साईंस में प्रकाशित किए गए हैं। इन तमाम तथ्यों की जानकारी पीआईबी द्वारा प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से जारी की गई
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