राष्ट्रीय कृमि मुक्ति कार्यक्रम आयोजित, बच्चों में कुपोषण और रक्त की कमी पर कार्यक्रम
प्रशिक्षण के दौरान चौसा प्रखंड के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ अरुण कुमार श्रीवास्तव ने आशा कार्यकर्ताओं को बताया कि कार्यक्रम के अंतर्गत 1 वर्ष से 19 वर्ष तक के सभी बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्रों व विद्यालय में अल्बेंडाजोल की दवा खिलाई जाएगी। कार्यक्रम के सघन अनुश्रवण के लिए जिला स्तरीय अनुश्रवण टीम का गठन किया जायेगा। जिसके द्वारा विभिन्न प्रखंडों में जाकर अनुश्रवण किया जायेगा। राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस का उद्देश्य बच्चों के समग्र स्वास्थ्य पोषण की स्थिति, शिक्षा तक पहुंच और जीवन की गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी करना है।
श्री श्रीवास्तव ने बताया कि राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस के दौरान बच्चों को दवा खिलाते समय कुछ सावधानी भी बरतनी होगी। जैसे कि अगर किसी बच्चों की कोई गंभीर बीमारी का इलाज चल रहा है और वह नियमित रूप से दवा खा रहा, कोई भी बच्चा सर्दी, खांसी, बुखार, सांस लेने में तकलीफ से बीमार है तो, उसे यह दवा नहीं खिलाई जाएगी। एक से दो वर्ष तक के बच्चों को आधी गोली को चूरा बनाकर पानी के साथ, दो से तीन वर्ष को एक पूरी गोली चूरा बनाकर पानी के साथ तथा तीन से 19 वर्ष तक के बच्चों को एक पूरी गोली चबाकर खिलायी जानी है। उन्होंने बताया कि दवा खिलाते समय यह ध्यान रखा जाये कि बच्चे दवा को चबाकर खाएं। दवा खाने के बाद जी मचलालना, पेट में हल्का दर्द, उल्टी, दस्त और थकान महसूस होना, लेकिन इससे घबराने की जरूरत नहीं है। पेट में कीड़ा होने के कारण यह प्रतिकूल प्रभाव दिखाई देगा।
इस संबंध में जानकारी देते हुए जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ. विनोद प्रताप सिंह ने बताया कि जिले में 10,00,478 बच्चों को दवा खिलाने का लक्ष्य रखा गया है। जिसके लिए आशा कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण शुरू कर दिया गया है। भारत सरकार के अभियान के तहत आंगनबाड़ी जाने वाले लक्षित 1 से 5 वर्ष तक के बच्चों तथा स्कूल जाने वाले 6 वर्ष 19 वर्ष तक के बच्चों एवं स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों को आशा कार्यकर्ता द्वारा गृहभ्रमण कर अल्बेंडाजोल की दवा खिलाई जाएगी। 15 मार्च को जो बच्चे दवाओं का लाभ लेने से वंचित रह जायेंगे, उनको 19 मार्च को मॉप अप राउंड में दवा खिलाई जायेगी। उन्होंने बताया कि बच्चों में कृमि संक्रमण अस्वच्छता तथा दूषित मिट्टी के संपर्क में आने से होती है। कृमि संक्रमण से बच्चों के पोषण स्तर तथा हीमोग्लोबिन स्तर पर दुष्प्रभाव पड़ता है, जिससे बच्चों में शारीरिक व बौद्धिक विकास बाधित होती है। इसलिए सरकार और स्वास्थ्य विभाग के स्तर पर साल में एक बार बच्चों को अल्बेंडाजोल की दवाओं का सेवन कराया जाता है।
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