एक पिता की व्यथा
मां की तरह हक अपना जता नहीं पाता...
मोहब्बत करता तो हैं बराबर की मगर बता नहीं पाता....
चीर लेता हैं,खुद का सीना औलाद की खुशी की खातिर...
मगर एक भी ज़ख्म सीने का दिखा नहीं पाता...
मेहनत करता हैं दिन रात बच्चों के भविष्य की खातिर...
मगर थका हारा खुद को दिखा नहीं पाता...
पिता देता हैं कुर्बानियां हर पल,रात दिन...
मगर शिकन माथे की कभी बच्चों को दिखा नहीं पाता....
Post A Comment: