40 - 45 के पार की महिलाएं
रचना - अनमोल कुमार / दीपक चौबे
चालीस पार की महिलाएं
बड़ी सजीली होती है
आ जाता है उन्हें
सास से निपटना
पति के नैनो का भटकना
बच्चो के साथ एडजेस्ट करना
अपना शौक खोज लेती है
कोई कुकिंग करती है
तो कोई पुरानी डायरी पलटती है
कोई गुनगुना लेती है पुराने तराने
नहीं देती किसी को अब ताने
कोई अपनी खूबसूरती निखारती है
कोई डांस में हाथ आजमाती है
कोई बागवानी अपनाती है
खुद को खुद से मिलाती है
हर चीज आजमाती है
अब पति पर शक नहीं करती
बच्चो से नहीं उलझती
बार बार घर नहीं बदलती
हर बात पर नहीं गरजती
सब समझ जाती है
आहिस्ता सब सुलझाती है
ये महिलाएं बडी संगीन होती है
ऊपर से शांत अंदर से रंगीन होती है
सब निपटा कर
जी लेती है खुद के लिए
कभी पकोड़े तल लेती है
अपने भी लिए
रिश्तों की गहराई जान लेती है
हर बात बिना बहस मान लेती है
ये बडी लचीली होती है
सच चालीस पार की महिलाएं
बड़ी सजीली होती है।।
(2)
45 पार की महिलाए
पैंतालीस-पार की औरतें
पहले पसन्द करतीं हैं-
गुलाबी-रंग की साड़ी..;
फिर
मन में
एक मीठी-चाह लिए
कह देतीं हैं-
"जो तुम्हारा मन हो..;
वही ले लो..!"
पैंतालीस-पार की औरतें
कभी पिता-पुत्र में
नोक-झोंक होने पर
ले लेतीं हैं-
बेटे का पक्ष..और..
डाँट देती हैं
पति को..,
क्षणिक-गुस्से से..;
उनके प्रति
अपने मन में
पूरे समर्पण-भाव को
सँजोये हुये...!
पैंतालीस-पार की औरतें
झिड़क पड़तीं हैं..,
पति से-
"आज फिर
सब्जी लाना भूल गए..?
अख़बार बन्द करवा दो..;
जब पढ़ना नहीं..!
दूधवाला
फिर
पैसे के लिए कह रहा था..!"
पैंतालीस-पार की औरतें
छोड़ देतीं हैं-
जिद करना..;
कर लेतीं हैं-
समझौता..;
हर परिस्थिति से..!
पैंतालीस-पार की औरतें
हर भूलने वाली बात
याद रखतीं हैं..!
हर याद रखने वाली चीज़
भूलने लगतीं हैं..!
पर बतातीं नहीं..
कि ऐसा कह देने से
पतिदेव
और लापरवाह हो जायेंगे..!
पैंतालीस-पार की औरतें
डाँट देतीं हैं..,
छोटे बेटे को..
'हाय..मम्मा!' 'मम्मा..यार!'
कहने पर..;
वात्सल्य के मीठे-भाव से..;
शरमाते हुए..!
पैंतालीस-पार की औरतें
बन्द कर देतीं हैं-
झगड़ा करना..,
अपने पति के कारनामों पर..!
पैंतालीस-पार की औरतें
सीख जातीं हैं-
धीरे-धीरे..
रोना..!
चुप रहना..!
पैंतालीस-पार की औरतें
खोने लगतीं हैं-
अपने पूरे घटना-क्रम
की वीथियों में-
सब कुछ तो मिला
जीवन में..;
प्रेम नहीं मिला..!
या मिला भी..;
फिर भी
रिक्त रह गया..,मन..!
पैंतालीस-पार की औरतें
पूजा-पाठ में
और बहलाने लगतीं हैं..;
अपना मन..!
महसूस करने लगतीं हैं-
तुलसी की गन्ध...;
अर्चना के दीप..,
तृषित-निश्छल-भावों के
अक्षत-पुष्प लिए..!
पैंतालीस-पार की औरतों को
भाने लगतीं हैं-शैतानियाँ...!
वैसे तो
प्रेम परिपक्व कर देता है..;
उम्र से पहले ही..!
फिर भी
पैंतालीस-पार की औरतें
बिल्कुल बच्चे-जैसी
होने लगतीं हैं...!
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