सतुआन और चैती छठ को लेकर आज पूरे दिन सजे रहे जिले के तमाम घाट
सत्तू गुड मटका और पंखे का लोगों ने किया दान
बक्सर - सतुआन को लेकर रविवार को गंगा स्नान के लिए नगर के विभिन्न् गंगा घाटों पर श्रद्धालुओं का आना जाना अहले सुबह से लगा रहा। तटों पर पहुंचने के साथ ही श्रद्धालु सबसे पहले पतित पावनी गंगा में डुबकी लगाए तथा अन्न व द्रव्य दान कर पुण्य अर्जित किए। फिर मंदिरों में दर्शन व पूजन कर देवी-देवताओं के सामने मत्था टेके।
हर वर्ष 14 अप्रैल को लगने वाले सतुआन मेला को लेकर सुबह से शुरू हुआ गंगा स्नान का सिलसिला दोपहर बाद तक चलता रहा। इस दौरान दूर दराज से आए लाखों लोगों ने गंगा में स्नान कर दान-पुण्य किया। इसको लेकर जिले के ग्रामीण इलाकों से लेकर पड़ोसी जिला पटना, भोजपुर, रोहतास, कैमूर से तो श्रद्धालु पहुंचे ही थे, साथ ही उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती बलिया और गाजीपुर से काफी तादाद में महिला व पुरुष पधारे थे। जिससे शहर काफी गुलजार हो गया था। स्नान के लिए वैसे तो सभी घाटों पर श्रद्धालु पहुंचे थे, लेकिन रामरेखा घाट व नाथ बाबा घाट पर सबसे अधिक लोगों ने स्नान किया। फिर मंदिरों में जाकर आराध्य का दर्शन व पूजन किए। इसके बाद गंगा तट पर पंडा को सत्तू, गुड़, पानी से भरे मटका व पंखे का दान किए। कतिपय श्रद्धालु नौका विहार करते हुये गंगा के उस पार स्थित मां मंगला भवानी मंदिर में जाकर भगवती की पूजा-अर्चना किए। मेले में उमड़नेवाली भीड़ को देखते हुए एक दिन पूर्व से ही नगर के प्रमुख घाटों के दोनों ओर भीखमंगों की जमात अपना कब्जा जमा कर बैठी थी। वही स्थान कब्जा को ले उनके बीच खुब खींचतान भी चलती रही। दूसरी ओर इस मौके को भुनाने के लिए व्यवसायियों ने घाटों के समीप खाने पीने से लेकर श्रृंगार प्रसाधनों की अनेक चलंत दुकानें भी सजा दी थीं। जहां स्नान के बाद लोगों ने जमकर पूजा-पाठ व श्रृंगार प्रसाधनों समेत अन्य सामानों की खरीदारी की।
मेष संक्रांति उर्फ सतुआन के अवसर पर होने वाले गंगा स्नान को ले प्रशासन द्वारा सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गए थे। इस दौरान नगर के सभी प्रमुख घाटों पर सुरक्षाबलों के अलावा दण्डाधिकारी व गोताखोर तैनात किए गए थे। नगर थाना चौक पर अंचलाधिकारी प्रशांत शांडिल्य और नगर थानाध्यक्ष संजय कुमार सिन्हा स्वयं यातायात की व्यवस्था का कमान संभाले हुए थे। जो वीर कुंवर चौक से रामरेखा घाट रोड या फिर मेन रोड में वाहनों के प्रवेश पर पूरी तरह रोक लगा दिया गया था। वही थानाध्यक्ष संजय कुमार सिन्हा ने बताया कि सुरक्षा के मद्देनजर नगर के विभिन्न स्थानों और तमाम चौक चौराहों पर पुलिस बल के साथ ही पुलिस पदाधिकारियों को तैनात किया गया था। रामरेखा घाट, नाथ बाबा घाट के अलावा जहाज घाट, कचहरी घाट, सिद्धनाथ घाट आदि तमाम घाटों पर सुरक्षा बलों के साथ ही गोताखोरों को भी तैनात किया गया था।
रामरेखा घाट पर रविवार को गंगा स्नान को ले लाखों की भीड़ उमड़ी थी। इस दौरान छोटे-छोटे बच्चों समेत अनेक बड़े और बुजुर्ग भी अपने परिजनों से बिछड़कर मिलने के लिए बेचैन और छटपटाते नजर आए। उनमें से अनेक लोगों को स्थानीय पुलिस की तत्परता से तुरंत मिलवा दिया गया तो अनेक अपने परिजनों से मिलने के इंतजार में घाट से लेकर थाने का चक्कर लगाते रहे। वही बाहर से आने वाले वाहन किला मैदान में पार्क करवाया गया था। वही ई रिक्शा चालक और ऑटो चालकों की आमदनी बढ़ गई थी।
रामरेखा घाट के पंडा अमरनाथ पांडे उर्फ लाला बाबा ने बताया कि मेष संक्रांति को ही कई राज्यों में सतुआन पर्व के तौर पर मनाया जाता है। मेष संक्रांति को मौसम में बदलाव, खेती और प्रकृति से जोड़ा जाता है। इस दिन सूर्य देवता की उपासना की जाती है। साथ ही मौसम की बदलाव से धरती अन्न पैदा कर रही है जिससे जीवन में खुशहाली आती है। इसलिए ऋतु-परिवर्तन तथा फसलों की भरमार होने पर यह त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन सत्तू खाने की परंपरा काफी समय से चली आ रही है। मिट्टी के बर्तन में पानी, गेहूं, जौ, मकई और चना का सत्तू रखा जाता है। इसके साथ आम का टिकोरा भी रखा जाता है और भगवान को भोग लगाया जाता है। इसके बाद प्रसाद के तौर पर सत्तू खाया जाता है। झारखंड, यूपी और बिहार के कई इलाकों में गर्मी के मौसम में दोपहर में सत्तू खाने का रिवाज है। सत्तू को सेहत के लिए अच्छा माना जाता है।
वहीं दूसरी ओर जिले मे आस्था का महापर्व चैती छठ जगह जगह मनाया गया। रविवार को अस्ताचलगामी यानी डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया गया। शहर के गंगा किनारे रामरेखा घाट, नाथ बाबा घाट, सती घाट पर काफी भीड़ देखा गया। इसके साथ ही ग्रामीण इलाका के नदी घाटों पर छठ व्रतियों की भीड़ उमड़ पड़ी। वही प्रशासनिक पदाधिकारियों द्वारा गंगा में वोट से गश्त लगाया जा रहा था।
छठ व्रतियों ने अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पण करने के बाद शाम को घर लौट कर अपने आंगन एवं छत पर कोसी भर धन-धान्य की कामना कर अपने पुत्र एवं पति के दीर्घ जीवन के लिए मन्नत मांगी। कोसी भरने के समय महिलाओं ने छठ गीत गाये। वही इस संबंध में लाला बाबा ने बताया कि पारिवारिक सुख-समृद्धि मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए चैती छठ पर्व मनाया जाता है। स्त्री पुरुष समान रूप से इस पर्व को मनाते हैं। छठ व्रत के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। उनमें से एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब श्री कृष्ण द्वारा बताए जाने पर द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तब उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं पांडवों को राजपाट वापस मिला। सोमवार की सुबह उदीयमान भगवान को अर्घ्य देने के साथ लोक आस्था के चार दिवसीय महापर्व का समापन होगा।
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