बंगाल पर विवाद - पियवा गयले कलकत्ता, पूरब की पीड़ा पर आधारित लोकगीत
भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर ने सबसे पहले पूरब के पीड़ा लिखा था उनका गीत पियवा गइले कलकतवा काफी लोकप्रिय हुआ था आज भी लोकप्रिय है, पश्चिम बंगाल के मिदनापुर के मेले में रामलीला देखने के बाद ही भिखारी ठाकुर के मन में गीत गवनाई का कॉन्सेप्ट आया उन्होंने पलायन की पीड़ा को अपना हथियार बनाया। भोजपुरी लोकगीतों में बंगाल बंगाल की महिलाएं पूर्व से ही छाई रही है यह बात जरूर है कि उन्हें नायिका के रूप में नहीं विलेन के रूप में ही ज्यादा प्रस्तुत किया गया है इसके कई सामाजिक कारण भी हैं।बाद के दौर में भोजपुरी गीत संगीत के लिए पद्मश्री और पद्म विभूषण पाने वाली शारदा सिन्हा ने गाया लेले आईह हो पिया टिकवा बंगाल से.. भोजपुरी गीत संगीत में बंगाल कितनी चर्चा और खासकर बंगाली स्त्रियों की इतनी चर्चा क्यों इसके पीछे के मर्म को समझने के लिए थोड़ा सा फ्लैशबैक में जाना होगा बिहार के लोग पहले रोजी रोजगार की तलाश में सबसे ज्यादा बंगाल जाते थे वहां जुट के मिल में उन्हें काम मिलता था वर्षों तक वहां कमाते थे वही रच बस जाते थे यही कारण था कि भोजपुरी लोकगीतों में बंगाल की स्त्रियों को जादूगरनी के तौर पर वर्णित किया गया। बिहार का बंगाल से काफी लगाव रहा बिहारी लोगों को बंगाल में रोजगार मिला तो बंगाल को समृद्ध करने वाले सस्ते मजदूर।बिहार के स्कूली सिलेबस मेंएक पाठ शामिल किया गया था इसका शीर्षक था पंचकार से पम्मकार इस पाठ में बताया गया था कि बंगाल की स्त्रियां काफी सुंदर होती है उनके लंबे बाल होते हैं आंखें काफी आकर्षक होते हैं बंगाल स्त्री प्रधान प्रदेश है। साहित्य संगीत में भी बंगाल की स्त्रियों की सुंदरता के नक्शे शीर्षक वर्णन की परिपाटी रही है पूरे देश में सबसे ज्यादा खूबसूरत स्त्रियों के तौर पर बंगाल की महिलाओं को माना गया है।जबकि दूसरी तरफ इसकी तुलना पंजाब से की गई थी जो पुरुष प्रधान क्षेत्र है। बिहार के सरकारी स्कूलों के किताब में इसे शामिल किया गया था उस समय बिहार में राजद की सरकार थी इस दौर में लालू प्रसाद यादव की जीवनी गुदरी के लाल को भी बिहार के बच्चों को पढ़ाया जा रहा था। इन दोनों पर विवाद हुआ और दोनों को स्कूली पाठ्यक्रम से हटा दिया गया। अमूल विषय पर आते हैं भाजपा ने आसनसोल से भोजपुरी गायक पवन सिंह को उम्मीदवार बनाया था टिकट भी दे दिया गया था पवन सिंह समेत भोजपुरी के तमाम गायको ने बंगाल की स्त्रियों पर गाना गया है अब बंगाल के पॉलिटिक्स में यही गाना विवाद का कारण बना और पवन सिंह को अपना टिकट वापस करना पड़ा पवन सिंह ने बंगाली स्त्रियों को लेकर कोई गाली नहीं दी है बल्कि भोजपुरिया ठेठ अंदाज में उन महिलाओं के लिए जो बंगाल से बिहार जाकर बार डांसर का काम करती हैं आर्केस्ट्रा ग्रुपों में काम करती हैं उनको इंगित करके गीत गाया है। बंगाल की स्त्रियों को देश में सबसे ज्यादा खूबसूरत माना जाता है या उपमा किसी भोजपुरिया गायक या कलाकार ने नहीं दी है। भोजपुरी लोक संस्कृति में पूरब की ओर कमाने जाने वाले पुरुष वर्षों घर वापस नहीं लौटते थे तब के गीत में भी भिखारी ठाकुर ने बंगाली स्त्रियों को जादूगरनी तक की उपमा दे दी समय और कल बदला तो थोड़ी सी विद्रूपता आई। पवन सिंह का विरोध करने वाले लोगों को इस बात की भी पड़ताल करनी चाहिए की 50000 से ज्यादा जो बंगाल की लड़कियां बिहार में आकर रोजी रोजगार कर रही हैं उन पर क्यों नहीं रोक लगाती। छपरा और सिवान जिले के संधि स्थल पर बाजार है जिसका नाम है जनता बाजार वहां 10000 से ज्यादा बंगाल की नर्तकियों ने अपना स्थाई बसेरा बसा लिया है। पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के नैन नक्श सुंदरता उनकी अदाओं पर गीत लिखे और गए जाते हैं। पर कीमत पवन सिंह जैसे गायकों को उठानी पड़ती है, रिंकिया के पापा और लहंगा रिमोट से उठाने वालों से लेकर शुक्रवार से सोमवार तक सटे रहने वालों से कोई सवाल नहीं पूछता। स्त्री चाहे बंगाल की हो या बिहार की सब की गरिमा और सम्मान बराबर है। पर सोच और कार्रवाई एक तरफ नहीं होना चाहिए। वैसे पवन सिंह आफ बिहार के काराकाट लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे लोकतंत्र में हर किसी को चुनाव लड़ने का अधिकार आसनसोल से भाजपा ने अहलूवालिया को मैदान में उतारा है।
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