*प्रेरक कथा* 



                   *देवदूत *


रचना - अनमोल कुमार / राजन मिश्रा 

पढ़िये एक अद्भुत कथा, "भगवन जो करते है, अच्छे के लिए करते है।"

मृत्यु के देवता यमराज  ने अपने एक दूत को पृथ्वी पर भेजा एक स्त्री मर गयी थी, उसकी आत्मा को लाना था। देवदूत आया, लेकिन चिंता में पड़ गया क्योंकि तीन छोटी-छोटी लड़कियां जुड़वां–एक अभी भी उस मृत स्त्री के स्तन से लगी है एक चीख रही है, पुकार रही है एक रोते-रोते सो गयी है, उसके आंसू उसकी आंखों के पास सूख गए हैं.

तीन छोटी जुड़वां बच्चियां और स्त्री मर गयी है, और कोई देखने वाला नहीं है पति पहले मर चुका है परिवार में और कोई भी नहीं है इन तीन छोटी बच्चियों का क्या होगा?

उस देवदूत को यह खयाल आ गया, तो वह खाली हाथ वापस लौट गया उसने जा कर अपने प्रधान को कहा कि मैं न ला सका, मुझे क्षमा करें, लेकिन आपको स्थिति का पता ही नहीं है तीन जुड़वां बच्चियां हैं–छोटी-छोटी, दूध पीती एक अभी भी मृत स्तन से लगी है, एक रोते-रोते सो गयी है, दूसरी अभी चीख-पुकार रही है मेरा हृदय  ला न सका उसको क्या यह नहीं हो सकता कि इस स्त्री को कुछ दिन और जीवन के दे दिए जाएं? कम से कम लड़कियां थोड़ी बड़ी हो जाएं और कोई देखने वाला भी  नहीं है।

मृत्यु के देवता ने कहा,  तू तो फिर बहुत समझदार हो गया; उससे ज्यादा, जिसकी मर्जी से मौत होती है, जिसकी मर्जी से जीवन होता है! 

यह तो तूने  पाप कर दिया, और इसकी तुझे सजा जरूर  मिलेगी और सजा यह है कि तुझे पृथ्वी पर चले जाना पड़ेगा और जब तक तू तीन बार न हंस लेगा अपनी मूर्खता पर, तब तक वापस न आ सकेगा

इस बात को थोड़ा समझना तीन बार न हंस लेगा अपनी मूर्खता पर–क्योंकि दूसरे की मूर्खता पर तो सभी अहंकार के बस हंसते हैं लेकिन अपनी मूर्खता पर हंसते हैं तब अहंकार टूटता है.

वह राजी हो गया दंड भोगने को, लेकिन फिर भी उसे लगा कि सही तो मैं ही हूं और हंसने का मौका कैसे आएगा?

उसे जमीन पर फेंक दिया गया

एक मोची, सर्दियों के दिन करीब आ रहे थे और बच्चों के लिए कोट और कंबल खरीदने शहर गया था, कुछ रुपए इकट्ठे कर के। 

जब वह शहर जा रहा था तो उसने राह के किनारे एक नंगे आदमी को पड़े हुए, ठिठुरते हुए देखा यह नंगा आदमी वही देवदूत था, जो पृथ्वी पर फेंक दिया गया था.

उस को दया आ गयी और बजाय अपने बच्चों के लिए कपड़े खरीदने के उसने इस आदमी के लिए कंबल और कपड़े खरीद लिए इस आदमी को कुछ खाने-पीने को भी न था, घर भी न था, छप्पर भी न था जहां रुक सके तो मोची ने कहा कि अब तुम मेरे साथ ही आ जाओ लेकिन अगर मेरी पत्नी नाराज हो–जो कि वह निश्चित होगी, क्योंकि बच्चों के लिए कपड़े खरीदने लाया था, वह पैसे तो खर्च हो गए–वह अगर नाराज हो, चिल्लाए, तो तुम परेशान मत होना थोड़े दिन में सब ठीक हो जाएगा।

उस देवदूत को ले कर मोची घर लौटा न तो मोची को पता है कि देवदूत घर में आ रहा है, न पत्नी को पता है जैसे ही देवदूत को ले कर मोची घर में पहुंचा, पत्नी एकदम पागल हो गयी बहुत नाराज हुई, बहुत चीखी-चिल्लायी।

और देवदूत पहली दफा हंसा मोची ने उससे कहा, हंसते हो, बात क्या है? उसने कहा, मैं जब तीन बार हंस लूंगा तब बता दूंगा।

देवदूत हंसा पहली बार, क्योंकि उसने देखा कि इस पत्नी को पता ही नहीं है कि मोची देवदूत को घर में ले आया है, जिसके आते ही घर में हजारों खुशियां आ जाएंगी लेकिन आदमी देख ही कितनी दूर तक सकता है! पत्नी तो इतना ही देख पा रही है कि एक कंबल और बच्चों के कपड़े नहीं बचे जो खो गया है वह देख पा रही है, जो मिला है उसका उसे अंदाज ही नहीं है–मुफ्त! घर में देवदूत आ गया है. जिसके आते ही हजारों खुशियों के द्वार खुल जाएंगे तो देवदूत हंसा उसे लगा, अपनी मूर्खता–क्योंकि यह इसकी पत्नी भी नहीं देख पा रही है कि क्या घट रहा है!

जल्दी ही, क्योंकि वह देवदूत था, सात दिन में ही उसने मोची का सब काम सीख लिया और उसके जूते इतने प्रसिद्ध हो गए कि मोची महीनों के भीतर धनी होने लगा आधा साल होते-होते तो उसकी ख्याति सारे लोक में पहुंच गयी कि उस जैसा जूते बनाने वाला कोई भी नहीं, क्योंकि वह जूते देवदूत बनाता था सम्राटों के जूते वहां बनने लगे धन अपरंपार बरसने लगा.

एक दिन सम्राट का आदमी आया और उसने कहा कि यह चमड़ा बहुत कीमती है, आसानी से मिलता नहीं, कोई भूल-चूक नहीं करना जूते ठीक इस तरह के बनने हैं और ध्यान रखना जूते बनाने हैं, स्लीपर नहीं क्योंकि रूस में जब कोई आदमी मर जाता है तब उसको स्लीपर पहना कर मरघट तक ले जाते हैं मोची ने भी देवदूत को कहा कि स्लीपर मत बना देना जूते बनाने हैं, स्पष्ट आज्ञा है, और चमड़ा इतना ही है अगर गड़बड़ हो गयी तो हम मुसीबत में फंसेंगे.

लेकिन फिर भी देवदूत ने स्लीपर ही बनाए जब मोची ने देखे कि स्लीपर बने हैं तो वह क्रोध से आगबबूला हो गया वह लकड़ी उठा कर उसको मारने को तैयार हो गया कि तू हमारी फांसी लगवा देगा! और तुझे बार-बार कहा था कि स्लीपर बनाने ही नहीं हैं, फिर स्लीपर किसलिए?

देवदूत फिर खिलखिला कर हंसा तभी आदमी सम्राट के घर से भागा हुआ आया उसने कहा, जूते मत बनाना,स्लीपर बनाना क्योंकि सम्राट की मृत्यु हो गयी है.

भविष्य अज्ञात है सिवाय उसके और किसी को ज्ञात नहीं और आदमी तो अतीत के आधार पर निर्णय लेता है सम्राट जिंदा था तो जूते चाहिए थे, 

मर गया तो स्लीपर चाहिए तब वह मोची उसके पैर पकड़ कर माफी मांगने लगा कि मुझे माफ कर दे, मैंने तुझे मारा पर उसने कहा, कोई हर्ज नहीं मैं अपना दंड भोग रहा हूं.

लेकिन वह हंसा आज दुबारा मोची ने फिर पूछा कि हंसी का कारण? उसने कहा कि जब मैं तीन बार हंस लूं…।

दुबारा हंसा इसलिए कि भविष्य हमें ज्ञात नहीं है इसलिए हम आकांक्षाएं करते हैं जो कि व्यर्थ हैं हम अभीप्साएं करते हैं जो कि कभी पूरी न होंगी हम मांगते हैं जो कभी नहीं घटेगा। क्योंकि कुछ और ही घटना तय है.

हमसे बिना पूछे हमारी नियति घूम रही है और हम व्यर्थ ही बीच में शोरगुल मचाते हैं चाहिए स्लीपर और हम जूते बनवाते हैं मरने का वक्त करीब आ रहा है और जिंदगी का हम आयोजन करते हैं.

तो देवदूत को लगा कि वे बच्चियां! मुझे क्या पता, भविष्य उनका क्या होने वाला है? मैं नाहक बीच में आया और तीसरी घटना घटी कि एक दिन तीन लड़कियां आयीं जवान उन तीनों की शादी हो रही थी और उन तीनों ने जूतों के आर्डर दिए कि उनके लिए जूते बनाए जाएं एक बूढ़ी महिला उनके साथ आयी थी जो बड़ी धनी थी देवदूत पहचान गया, ये वे ही तीन लड़कियां हैं, जिनको वह मृत मां के पास छोड़ गया था और जिनकी वजह से वह दंड भोग रहा है वे सब स्वस्थ हैं, सुंदर हैं.

उसने पूछा कि क्या हुआ? यह बूढ़ी औरत कौन है? 

उस बूढ़ी औरत ने कहा कि ये मेरी पड़ोसिन की लड़कियां हैं गरीब औरत थी, उसके शरीर में दूध भी न था उसके पास पैसे-लत्ते भी नहीं थे और तीन बच्चे जुड़वां। वह इन्हीं को दूध पिलाते-पिलाते मर गयी लेकिन मुझे दया आ गयी, मेरे कोई बच्चे नहीं हैं, और मैंने इन तीनों बच्चियों को पाल लिया.

अगर मां जिंदा रहती तो ये तीनों बच्चियां गरीबी, भूख और दीनता और दरिद्रता में बड़ी होतीं मां मर गयी, इसलिए ये बच्चियां तीनों बहुत बड़े धन-वैभव में, संपदा में पलीं और अब उस बूढ़ी की सारी संपदा की ये ही तीन मालिक हैं और इनका सम्राट के परिवार में विवाह हो रहा है.

देवदूत तीसरी बार हंसा और मोची को उसने कहा कि ये तीन कारण हैं भूल मेरी थी नियति बड़ी है और हम उतना ही देखते हैं, जितना देख पाते हैं जो नहीं देख पाते, बहुत विस्तार है उसका और हम जो देख पाते हैं उससे हम कोई अंदाज नहीं लगा सकते, जो होने वाला है, जो होगा मैं अपनी मूर्खता पर तीन बार हंस लिया हूं. अब मेरा दंड पूरा हो गया और अब मैं जाता हूं जो प्रभु करते है अच्छे के लिए करते है..!!

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