आखिर कब तक बाबाओं के चक्कर में "घनचक्कर" बनेंगे हम
बाबाजी में आस्था के नाम पर फिर 130 से ज्यादा निश्छल श्रद्धालुओं ने अपने प्राण गंवा दिए
रिपोर्ट -अनमोल कुमार/राजन मिश्रा
हाथरस में हुए इस हादसे की कल्पना कर ही रूह कांप उठती है। कैसे दम घुटने और कुचलने से इन लोगों ने तड़प तड़प कर दम तोड़ा होगा और अब इनके घर परिवार वालों पर क्या बीत रही होगी...!
ऐसे जितने भी बाबा हैं वो सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी दुकानदारी चला रहे हैं। भगवा चोला ओढ़कर साधु के भेष में छुपे हुए शैतान हैं। बस आँख खोलकर इन्हें पहचानने की जरूरत है।
आखिर क्यों लोग इनके धोखे में आ जाते हैं जबकि इनके पास कोई इलाज या चमत्कार नाम की कोई चीज़ नहीं होती। ये न तो कोई समाधान करते और न किसी का भला।
धर्म और चमत्कार की उम्मीद में दुखी पीड़ित लोग अपनी समस्या लेकर इनके पास जाते हैं जबकि इन बाबा का न तो धर्म से कोई लेना होता है और न कोई देना। आस्था के नाम पर भोली जनता को ठगने का काम करते हैं।
सोचने वाली बात यह है कि इन बाबा के चक्कर में लोग आख़िर आ कैसे जाते हैं? प्रश्न यह भी है कि एक एक कर सभी बाबाओं की असलियत जग जाहिर हो जाने के बाद भी कैसे आँखों पर पट्टी बांध एक नए बाबा को भगवान के समकक्ष मान लेते हैं? दो कोड़ी के अनपढ़ गंवार बाबा कैसे रातों रात प्रसिद्धि पा कर अरबपति बन जाते हैं? इनके एशो आराम और ठाठ बाट किसी राजा महाराजा से कम नहीं होते!
लाखों अनुयाई की भीड़ जुटा कर इनके द्वारा ऐसा तमाशा दिखाया जाता है कि अच्छे अच्छे पढ़े लिखे लोग इनके समर्थन में उतर जाते हैं। इतना ही नहीं इनके चाले लगकर टोने टोटके और वो सब कुछ आंख बंद कर करते रहते हैं जो इस वैज्ञानिक युग में कदापि स्वीकार नहीं किया जा सकता।
बाबा सभी एक हैं बस इनकी दुकानदारी और धंधेबाजी अलग अलग है। यानी इनका काम जनता को मूर्ख बनाकर उलझाए रखना होता है। कोई बाबा योग की आड़ में बेवकूफ बना कर अपने प्रोडक्ट बेच रहा है और घटिया सामग्री को जनता को टिकाए जा रहा है। वह तो भला हो सुप्रीम कोर्ट का जो इनसे कान पकड़वा कर माफीनामा मंगवा कर इनकी चड्डी उतरवा दी। कोई पाखंडी बाबा वर्तमान और भविष्य के सपने भगवान के दलाल बनकर खुलेआम बेच रहा है। कोई रोकटोक नहीं। सुप्रीम कोर्ट को इनकी परीक्षा जरुर लेना चाहिए और अगर ये गलती से उत्तीर्ण हो जाएं तो देश के महत्वपूर्ण मामलों में इनका उपयोग हो। कहानी घर घर की खेल कर अभी तो ये समाज का कोई भला नहीं कर रहे सिर्फ ख़ुद को भगवान समझ बैठे हैं।
राम रहीम और आशाराम जैसों की तो क्या बात करें इनको देखकर भी लोग अंधे होकर नए नए बाबा को ढूंढ कर निकाल रहे हैं। निर्मल बाबा का सुपरहिट शो तो ऐसा फ्लॉप हुआ की अब उसका कोई नाम लेने वाला भी नहीं है। हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवी देवता भी क्या कम पड़ जाते हैं जो लोग इन बाबा की शरण में पहुंच जाते हैं? असल में इन बाबा को खुद यह भी पता नहीं होता है की कल इनके साथ क्या होना है तो फिर लोग इन पर क्यों इतना विश्वास कर लेते हैं। कहावत है दुनियां में मूर्खों की कमी नहीं है एक ढूंढो हज़ार मिलते हैं।
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