लक्ष्मणपुर बाथे की व्यथा


रिपोर्ट -अनमोल कुमार/राजन मिश्रा 

बिहार के अरवल जिले का सोन नदी के तट पर बसा एक छोटा-सा गांव लक्ष्मणपुर-बाथे। दलितों-पिछड़ी जाति के लगभग 3 से 4 सौ लोगों की आबादी। मेहनत-मशक्कत कर दो जून किसी तरह रोटी का जुगाड़ करने वाले...। किसी-किसी के पास थोड़ी जमीन...। पर ज्यादातर खेतिहर मजदूर...। दबंगों-रंगदारों से डर कर, सहम कर रहने वाले...। हाथ जोड़ कर मालिक-मालिक कहने वाले...। बेगार करने पर मजबूर किए जाने वाले...। पिछड़े बिहार के सबसे पिछड़े दबे-कुचले लोग...। इस छोटे-से गांव में अंधेरा भी कुछ जल्दी ही घिर आता है। बिजली नहीं, पानी नहीं, सड़क नहीं। पक्की ईंटों का कोई घर नहीं। सिर्फ झोंपड़ियां...।

 सांझ ढलते काम करके औरतें और मर्द अपनी-अपनी झोंपड़ियों में लौट आते औरछप्पर के ऊपर धुआं उठने लगता। दीये की रोशनी भी घंटा-दो घंटा टिमटिमाती, जब तक लोग रोटी नहीं खा लेते। फिर घुप्प अंधेरा...। ऐसी ही एक अंधेरी रात थी, जब खा-पीकर सभी जाड़े की रात में कोई पुआल पर तो कोई फटी कंबल ओढ़े सो रहा था। किसे पता था कि वह रात क़यामत की रात बन कर आने वाली है। कोई नहीं जानता था, किसी ने सोचा तक न था वह रात जवानों, बूढ़ों, औरतों और बच्चों के खून में नहा उठेगी। हां, उस रात गांव में मौत का तांडव हुआ था। तड़ातड़ गोलियों की आवाज से जब लोगों की नींद खुली तो कई बिना कुछ जाने-समझे मौत के आग़ोश में समा चुके थे। दिसंबर, 1997 की वह काली रात थी, जब पटना से 125 किलोमीटर की दूरी पर अरवल जिले के लक्ष्मणपुर बाथे गांव में रणवीर सेना के हथियारबंद लोगों ने 58 लोगों को मौत की नींद सुला दिया था। इन पिछड़ी-दलित जातियों के ग्रामीणों का अपराध बस इतना था कि जमींदारों की मिलिशिया रणवीर सेना इन्हें नक्सलियों का समर्थक मानती थी।सन् 1992 में गया जिले के बारा में माओवादियों ने ऊंची जाति के 37 लोगों की हत्या कर दी थी। बाथे नरसंहार कर रणवीर सेना ने इसी का बदला लिया था। यह हत्याकांड अत्यंत ही बर्बर था। रणवीर सेना के हथियारबंद गुंडों ने औरतों और दुधमुंहे बच्चों तक को नहीं छोड़ा था। इस हत्याकांड ने बिहार को हिला डाला था।उस समय बिहार में लालू प्रसाद का शासन था। रात के अंधेरे में रणवीर सेना के लगभग 100 हथियारबंद लोग गांव में घुस गए और उन्होंने 58 दलितों को गोलियों से भून डाला। इऩमें 27 औरतें और 16 बच्चे भी शामिल थे। रणवीर सेना के आतताइयों ने औरतों और बच्चों को तलवार से भी काटा। एक साल के मासूम को भी उन्होंने नहीं छोड़ा था। इन हत्याओं से सोन नदी का पानी लाल हो गया थातत्कालीन राष्ट्रपति के.आर.नारायण इस हत्याकांड पर क्षोभ प्रकट करते हुए इसे स्वतंत्र भारत की सबसे शर्मनाक घटना बताया था। 7 अप्रैल, 2010 को पटना सिविल कोर्ट के एडिशनल डिस्ट्रिक्ट और सेशन जज विजयप्रकाश मिश्र ने इस मामले में 16 लोगों को मृत्युदंड और 10 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। फैसला देते हुए उन्होंने इसे मानवता पर एक काला धब्बा बताते हुए क्रूरता का रेयरेस्ट ऑफ रेयर मामला बताया था

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