शराबबंदी बहस : बाप को दारू पिलाकर उसके राजस्व से बेटे को पढ़ाने की बातें असंतुलित - अमन समिति



रिपोर्ट -अनमोल कुमार/राजन मिश्रा 

पटना/बिहार - बिहार में शराबबंदी जारी रहे या इसे खत्म कर दिया जाए, इसे लेकर इन दिनों बहस का दौर जारी है। ऐसे में अमन समिति के संयोजक धनंजय कुमार सिन्हा ने एक प्रेस बयान जारी कर कहा है कि बिहार में शराबबंदी सही कदम है। इसे और दुरूस्त करने की जरूरत है। कड़ाई से शराबबंदी का अनुपालन करने पर ही यह पूर्णरूपेण धरातल पर उतर पाएगा। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में अनेकों खामियां हैं तो क्या राजतंत्र ले आया जाए? या फिर लोकतंत्र की खामियों को दूर करने का प्रयास किया जाए? शराबबंदी में खामियां हैं तो उन खामियों को दुरूस्त करने की बात की जाए, न कि शराबबंदी को खत्म करने की। घाव ठीक करने के लिए पैर नहीं काटे जाते। शराबबंदी सौ प्रतिशत सही कदम है। बस इसकी तस्करी में शामिल माफियाओं पर शिकंजा कसने की जरूरत है, जिसके लिए बिहार सरकार को तत्परता से कड़े कदम उठाने चाहिए।


धनंजय ने सरकार से मांग करते हुए कहा कि पूरे देश में भी शराबबंदी लागू की जानी चाहिए। ऐसी बातें या मांगें सही नहीं हैं कि शराबबंदी से अगर राजस्व का नुकसान हो रहा है तो शराबबंदी को खत्म कर दिया जाए या अगर शराबबंदी के बावजूद इसकी तस्करी जारी है तो शराबबंदी को ही खत्म कर दिया जाए। हमारा देश एक लोक कल्याणकारी राज्य है। सरकार कोई बिजनेस फर्म नहीं है कि हर चीज में सिर्फ आर्थिक लाभ और नुकसान का ध्यान रखकर निर्णय ले। अफीम-चरस-गांजा जैसी कई नशीले पदार्थों की कालाबाजारी देश में हो रही है और इसमें शामिल माफिया भी काफी कमाई कर रहे हैं। इन पर भी शिकंजा कसने की जरूरत है।


उन्होंने सवाल उठाया कि क्या अगर अफीम, चरस और गांजा जैसे नशीले पदार्थों की कालाबाजारी हजारों करोड़ में हो रही है और सरकार को इससे कोई आर्थिक लाभ नहीं हो पा रहा है तो सरकारें अपने राजस्व-वृद्धि के लिए ऐसे पदार्थों की लाइसेंसी दुकानें खुलवा दे और लाभ कमाने लगे?उन्होंने अमन समिति के माध्यम से सभी राजनैतिक-सामाजिक नेताओं से अनुरोध किया कि वे शराबबंदी को खत्म करने की बात करने की बजाय शराबबंदी में आ रही खामियों को बंद करने की बात और मांग करें। साथ ही, राज्य सरकार से भी अनुरोध किया कि बिहार में शराब माफियाओं के सरगनाओं पर त्वरित कड़ी कार्रवाई की जाए।


विदित हो कि जनसुराज अभियान के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने चंद दिनों पहले ही कहा है कि उनकी सरकार आयेगी तो सबसे पहले शराबबंदी को खत्म कर दिया जायेगा। इसके पीछे उनका तर्क है कि शराबबंदी के बावजूद बिहार में हर जगह शराब की होम डिलीवरी हो रही है और शराब माफियाओं को करोड़ों का फायदा हो रहा है, जबकि दूसरी तरफ शराबबंदी से बिहार सरकार को प्रतिवर्ष बीस हजार करोड़ रुपए का घाटा हो रहा है। इन पैसों का उपयोग अन्य जन उपयोगी कार्यों में किया जा सकता था।


जबकि दूसरी तरफ अमन समिति के संयोजक धनंजय का कहना है कि 'बाप को दारू पिलाइए और उसके राजस्व से बेटे को पढ़ाइए', ये असंतुलित बातें हैं। बाप को सौ रूपए का दारू पिलाकर उससे तीस रूपए राजस्व लेकर बेटे को पढ़ाने के लिए शराबबंदी को खत्म करने से बेहतर है कि हर बाप से उसके बेटे को पढ़ाने के नाम पर तीस रूपये मांग लिए जाएं। इसमें वे बाप भी तीस रूपये देने को तैयार हो जायेंगे जो दारू नहीं पीते हैं।

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