बक्सर जिले में चल रहे संस्कृत विद्यालय जोह रहे जीर्णोधार का बाट
दरकते छतों और क्षतिग्रस्त कमरों में बच्चों को पढ़ाने के लिए विवश है शिक्षक
शिक्षा विभाग की नजरअंदाजी और संस्कृत विद्यालयों के प्रति उदासीनता का शिकार है जिले के संस्कृत विद्यालय, संस्कारों का हो रहा पतन
विशेष रिपोर्ट - राजन मिश्रा, 24 दिसंबर 2024
बक्सर- जिले में इन दिनों शिक्षा विभाग द्वारा शिक्षा को बेहतर बनाने को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं लेकिन जब इसकी पड़ताल धरातल पर की जाती है तो विभाग द्वारा किए गए तमाम दावे खोखले और बेबुनियाद नजर आते हैं विभाग द्वारा सनातन संस्कृति को बढ़ावा देने वाले संस्कृत विद्यालयों और उनके कर्मचारियों के साथ वर्षों से सौतेलेपन का व्यवहार किया जा रहा है विभाग की करवाईया शिक्षकों और बच्चों दोनों के लिए किसी तलिबानी फरमान से कम दिखाई नहीं पड़ती एक तरफ शिक्षकों के वेतन से संबंधित मामले विभाग मे लंबित रखे जाते है वही वर्षों पुराने भवनों में चल रहे विद्यालयों का देखरेख करने की व्यवस्था विभाग द्वारा नहीं की जाती कई विद्यालयों के छत पूरी तरह से गिर चुके हैं वहीं कई विद्यालयों में दरकते छतों के तले बच्चे पढ़ने को विवश है ना चाहते हुए भी शिक्षक ढहे हुए भवन और क्षतिग्रस्त कमरों में बच्चों को पढ़ाते हैं ! लेकिन दूसरी ओर भवनों और कमरों की स्थिति को देखकर अभिभावक अपने बच्चों को स्कूलों से दूर हटाते जा रहे हैं ज्ञात हो कि इस समय में शिक्षा विभाग द्वारा बक्सर जिले में कुल 31 संस्कृत विद्यालयों का संचालन किया जा रहा है जिसमें किसी एक की स्थिति पूरी तरह से ठीक नहीं है
एक तरफ सरकार विद्यालय को नियमित रखने के लिए कर्मचारियों पर बच्चों की संख्या और शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के दबाव बनाती हैं वही दूसरी और सुविधाओं से वंचित संस्कृत विद्यालयों से अभिभावक अपने बच्चों को हटाते जा रहे हैं ऐसे में शिक्षक कर्मचारी अपने आप को चक्की में पीसते महसूस कर रहे हैं इन लोगों का कहना है कि पढ़ाई करने की बात करने पर अभिभावक क्षतिग्रस्त भवनों का हवाला देकर बेइज्जत करते हैं वहीं विभाग बच्चों की संख्या कम होने पर विद्यालय बंद करने और नौकरी पर आफत की बात करता है इस स्थिति में संस्कृत शिक्षकों के साथ "भयों गति सांप छछूंदर के ना निगलत बने ना उगलते बने" वाली कहावत चरितार्थ होते नजर आती है इन तथ्यों पर सरकार को संज्ञान लेना होगा
गौरतलब हो कि बक्सर धार्मिक और पावन स्थल है यहां से बड़े-बड़े विद्वान यहां तक कि मानव रूपी भगवान भी शिक्षा प्राप्त कर चुके है लेकिन सरकार सनातन को बढ़ावा देने वाले संस्कृत विद्यालयों के साथ भेदभाव बरत रही है जिसको खत्म करना होगा शिक्षा विभाग के लोगों को संस्कृत विद्यालयों के भवन और कमरों का निरीक्षण करने के बाद जिले के सभी संस्कृत विद्यालयों तक सुविधाओं को भेजना होगा इसमें जिला प्रशासन के लोगों को भी आगे आना होगा और हस्तक्षेप करके इन विद्यालयों की स्थिति सुधारनी होगी ताकि भविष्य में जिले के इन धरोहरों को वर्षों तक सुरक्षित रखा जा सके
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